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W7s news,,*गुवाहाटी, 28 फरवरी 2025:* भारत में दिव्यांग अधिकारों को लेकर प्रगति हो रही है, और हाल ही में एडवांटेज असम 2.0 इन्वेस्टमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर समिट 2025 में राज्य के विकास पर चर्चा हुई। दिव्यांग क्षेत्र से जुड़े संगठनों ने राज्य में समावेशी प्रगति के लिए एक और महत्वपूर्ण मुद्दे को आगे बढ़ाया।
शुक्रवार को शिशु सरोथी, गुवाहाटी में नेशनल सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट फॉर डिसेबल्ड पीपल (NCPEDP) और एमफैसिस एफ1 फाउंडेशन के सहयोग से "पूर्वोत्तर भारत में दिव्यांगजन के अधिकारों की पहुंच को मजबूत करने पर क्षेत्रीय परामर्श" का आयोजन किया गया। इस बैठक में सरकारी प्रतिनिधि, दिव्यांग संगठनों (DPOs), गैर सरकारी संगठनों (NGOs) और दिव्यांग व्यक्तियों ने हिस्सा लिया। इसमें दिव्यांगजन को उनके हक और सरकारी योजनाओं तक पहुंच में आ रही समस्याओं पर चर्चा हुई और समाधान सुझाए गए।
बैठक में दिव्यांग प्रमाण पत्र और यूनिक डिसएबिलिटी आईडी (UDID) कार्ड प्राप्त करने में आने वाली दिक्कतें, दिव्यांग योजनाओं के लिए बजट की कमी, न्याय तक पहुंच में बाधाएं, और समावेशी स्वास्थ्य बीमा जैसी समस्याओं पर गंभीर चर्चा हुई।
NCPEDP के कार्यकारी निदेशक, अरमान अली ने कहा,
"पूर्वोत्तर भारत जैसे विविध और भौगोलिक रूप से चुनौतीपूर्ण क्षेत्र में दिव्यांग लोगों को अपने मूल अधिकारों तक पहुंचने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यह परामर्श उन बाधाओं को दूर करने की दिशा में एक कदम है। सबसे जरूरी मांग यह है कि दिव्यांगजन को बिना किसी आय और उम्र की शर्त के, सरकार की 'आयुष्मान भारत' स्वास्थ्य बीमा योजना में शामिल किया जाए। मैं राज्य सरकार से अपील करता हूं कि इस पर तुरंत कार्रवाई हो।"
शिशु सरोथी की कार्यकारी निदेशक, केतकी बरदलै ने कहा,
"दिव्यांग प्रमाण पत्र और UDID कार्ड बनवाने की जटिल प्रक्रिया सबसे बड़ी समस्या है, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए। अलग-अलग कार्यालयों के चक्कर काटने पड़ते हैं और जानकारी के अभाव में कई लोगों को उनके हक से वंचित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया को सरल और सुलभ बनाना बेहद जरूरी है।"
इस बैठक में असम के स्वास्थ्य सेवा निदेशक डॉ. उमेश फांगचो और राज्य की दिव्यांगजन आयुक्त सुषमा हजारिका भी उपस्थित रहीं।
न्याय तक पहुंच:
बैठक में बताया गया कि न्याय प्रणाली तक दिव्यांगजन की पहुंच अभी भी सीमित है। अदालतों की इमारतें और प्रक्रियाएं उनके लिए अनुकूल नहीं हैं, वकीलों की कमी और भेदभावपूर्ण रवैया भी बाधा बनता है। विशेषज्ञों ने न्याय प्रणाली को दिव्यांगों के लिए अधिक समावेशी बनाने की जरूरत पर जोर दिया।
बजट और वित्तीय सहायता:
हालांकि दिव्यांग अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ी है, लेकिन राज्य सरकार का बजट अभी भी नाकाफी है। विशेषज्ञों ने दिव्यांग कल्याण के लिए बजट बढ़ाने और नीतियों को प्रभावी तरीके से लागू करने की जरूरत पर बल दिया।
इस क्षेत्रीय बैठक में सरकारी अधिकारी, दिव्यांग अधिकार कार्यकर्ता और विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों सहित 55 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। बैठक के निष्कर्ष सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को सौंपे जाएंगे, ताकि पूर्वोत्तर भारत के दिव्यांगजन भी देश के विकास में पीछे न छूटें।
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