“हम सिंगफो और ताई अहोम जैसी भाषाओं को खत्म नहीं होने दे सकते: कुलपति”
W7s news,,गुवाहाटी, 03 मार्च, 2025: असम और पूर्वोत्तर की लुप्तप्राय भाषाओं को बचाना अब वक्त की मांग है — यह बात मंगलवार को गौहाटी विश्वविद्यालय के भाषा विज्ञान विभाग और नॉर्थ ईस्ट रीजनल लैंग्वेज सेंटर (सीआईआईएल) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में विशेषज्ञों ने कही।
गौहाटी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नानी गोपाल महंत ने कहा, "भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं है, यह हमारी पहचान और संस्कृति की आत्मा है।" उन्होंने असम और पूर्वोत्तर की उन भाषाओं को बचाने की जरूरत पर जोर दिया, जो विलुप्त होने के कगार पर हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलगीत का हवाला देते हुए कहा, “सांची पाते भाषा दिबो, शिफुंग ए आशा दिबो”, जो भाषा और ज्ञान के संरक्षण के प्रति विश्वविद्यालय की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
प्रो. महंत ने कहा, “यह बहुत ही महत्वपूर्ण समय है। हम सिंगफो और ताई अहोम जैसी भाषाओं को गुमनामी में नहीं जाने दे सकते। हमारी यूनिवर्सिटी जल्द ही वैज्ञानिक अधिकारी नियुक्त करेगी, जो इन बहुमूल्य भाषाई धरोहरों का दस्तावेजीकरण और संरक्षण करेंगे।”
कार्यक्रम समन्वयक और विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा डॉ. अलीन्द्रा ब्रह्मा ने भी स्थानीय भाषाओं के संरक्षण को सामूहिक जिम्मेदारी बताया। उन्होंने कहा, "यह सिर्फ एक अकादमिक सम्मेलन नहीं है, बल्कि एक बड़ा आह्वान है। हमें शोध और समाज से संवाद, दोनों को साथ लेकर चलना होगा, तभी हमारी भाषाओं में नई जान फूंकी जा सकेगी।”
इस सम्मेलन में देश भर से भाषाविद, शोधकर्ता और शिक्षाविद शामिल हुए और भाषाई संरक्षण के विभिन्न पहलुओं पर गहन चर्चा हुई। प्रतिभागियों ने डिजिटल दस्तावेजीकरण, कहानियों के संग्रह और जमीनी स्तर पर जागरूकता अभियानों जैसे महत्वपूर्ण उपायों पर जोर दिया।
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